“यह मांग प्रतिष्ठा की नहीं, न्याय तक पहुँच की है”
बीकानेर। राजस्थान के पश्चिमी संभाग में वर्षों से चली आ रही हाईकोर्ट बेंच की मांग एक बार फिर सुर्खियों में है। बीकानेर बार एसोसिएशन के युवा अधिवक्ता नितिन चुरा कहते हैं – “यह मांग किसी शहर की प्रतिष्ठा की नहीं, बल्कि न्याय तक पहुँच की है।”
पश्चिमी राजस्थान की चुनौती
बीकानेर संभाग – जिसमें बीकानेर, चूरू, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले आते हैं – की आबादी 1.25 करोड़ से अधिक है। मगर यहां के लोगों को न्याय पाने के लिए सीधे जोधपुर हाईकोर्ट जाना पड़ता है, जिसकी दूरी कई जिलों से 300 से 450 किमी तक है।
एक किसान, मज़दूर या छोटे व्यापारी के लिए यह दूरी न केवल समय और खर्च बढ़ाती है, बल्कि कई बार न्याय से वंचित भी कर देती है।
वर्षों से चल रहा आंदोलन
बीकानेर बार ने इस मुद्दे को हमेशा जिंदा रखा। वरिष्ठ अधिवक्ता कुलदीप शर्मा, कमल नारायण पुरोहित, कु. इंदर सिंह, ब्रजरतन व्यास, त्रिलोक नारायण पुरोहित सहित दर्जनों नाम लंबे समय से आंदोलन का हिस्सा हैं।
वर्तमान अध्यक्ष विवेक शर्मा ने हाल के वर्षों में इसे और मुखरता से आगे बढ़ाया है।
राजनीतिक स्तर पर भी माहौल अनुकूल माना जा रहा है। बीकानेर सांसद और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल लगातार संसद और सरकार में यह मुद्दा उठा रहे हैं। अब जब भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) का बीकानेर दौरा प्रस्तावित है, तो उम्मीदें और प्रबल हो गई हैं।
आंकड़े बताते हैं सच्चाई
- हर साल बीकानेर संभाग से 18–20 हजार से अधिक केस सीधे जोधपुर हाईकोर्ट पहुंचते हैं।
- श्रीगंगानगर से दूरी 460 किमी, हनुमानगढ़ से 430 किमी, चूरू से 350 किमी और बीकानेर से 250 किमी है।
अन्य राज्यों में इसी तर्क पर बेंच स्थापित की गई हैं—मध्यप्रदेश (इंदौर, ग्वालियर), महाराष्ट्र (नागपुर, औरंगाबाद), उत्तरप्रदेश (लखनऊ)।
जोधपुर बार की हड़ताल पर सवाल
बीकानेर बेंच की संभावना भर से जोधपुर बार का हड़ताल पर जाना सवालों के घेरे में है।
क्या न्यायिक बेंच की स्थापना केवल शहर की प्रतिष्ठा का विषय है?
क्या न्याय केवल एक केंद्र तक सीमित होना चाहिए?
असल में बीकानेर बेंच बनने से जोधपुर का अधिकार कम नहीं होगा, बल्कि पश्चिमी राजस्थान की बड़ी आबादी को राहत मिलेगी।
संवैधानिक और विधिक आधार
संविधान का अनुच्छेद 39A कहता है कि राज्य का कर्तव्य है सभी नागरिकों को न्याय तक समान अवसर और सुलभ पहुँच उपलब्ध कराना।
लॉ कमीशन ने भी सिफारिश की है कि जहाँ दूरी और मुकदमों की संख्या अधिक हो, वहाँ हाईकोर्ट बेंच स्थापित की जानी चाहिए। बीकानेर इस कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरता है।
निष्कर्ष
बीकानेर हाईकोर्ट बेंच की मांग न क्षेत्रीय राजनीति है, न शहरों की प्रतिस्पर्धा। यह लाखों लोगों के न्याय के बुनियादी अधिकार का सवाल है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बीकानेर में हाईकोर्ट बेंच स्थापित होती है तो यह केवल बीकानेर ही नहीं, बल्कि पूरे पश्चिमी राजस्थान की न्याय यात्रा को सरल और सुलभ बनाने वाला ऐतिहासिक कदम होगा।

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